Shaheed Ki Yaad: Tum Lout Aao Poem by Kanupriya Gupta

Shaheed Ki Yaad: Tum Lout Aao

जहाँ भी गए हो चले आओ अब
की वो उम्मीद जो जाते समय
मेरे आँचल में रखकर चले गए थे
वो तुम्हारे इंतज़ार में मुरझाने लगी है

वो मुस्कराहट जो तुम जाते जाते
मेरे होंठों की खूंटी पर टांग गए थे
उसे ना जाने कहा से आकर
अकुलाहट ने जकड लिया है


तुम्हारी सफल यात्रा के लिए
भगवान को चढ़ाया प्रसाद
फीका सा लगने लगा है
शायद भोग लगा लिया उसने भी

लौट आओ की तुम जो दरवाज़े पर
पुनर्मिलन की आस छोड़ गए हो
वो भी तुम्हारे पिताजी की तरह
इधर से उधर चक्कर लगा रही है

अपनी माँ की आँखों में जो
पुत्रमोह छोड़ गए हो तुम
वो कई दिनों की अधूरी नींद के कारण
लाल डोरों में बदल गया है

चले आओ की तुम्हारी विजय की खबर
वीरगति की खबर से ज्यादा सुख देगी
तुम्हारी वीरगति सम्मान दे सकती है
पर हम सबकी जिंदगी भर की नींद नहीं
तुम लौट आओ

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
इक शहीद को याद करके रोना उसका अपमान माना जाता है पर उसके लौट आने की आस तो परिवारों से कोई नहीं छीन सकता वो दुसरे मुसाफिरों की तरह ही यात्रा पर जाता है वो लौटकर आए ना आए उसके अपने यादों को आने से नहीं रोक सकते....
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