Tum Mujhe Jitne Mayassar Ho Poore To Nahi Ho Poem by Kanupriya Gupta

Tum Mujhe Jitne Mayassar Ho Poore To Nahi Ho

वक़्त से जुड़ गए रूह से मेरी जुड़े तो नहीं हो
तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो

हमने तो हर शय में तमन्ना की तुम्हे चाहने की
तेरे वास्ते देखे हर ख्वाब को हकीक़त बनाने की
तुम भी खेल -ए -जिंदगी की हर चाल में जायज़ हो
रश्क बस एक है की इश्क की चाल में ज़रा नाजायज़ हो
पर मेरी दुनिया में बस डूब के चाहने की बात होती है
प्यार है तो सब है इसी में शय और मात होती है

तुमने जो याद न रखा उसे भूले तो नहीं हो
तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो

आओ सूरज की नहीं धरती बात करते हैं
हो चाहे चाँद रात बस हम तुमको याद करते हैं
तुम समुन्दर के पार दूर कही भटके हो
प्यार से दूर कही जिंदगी में अटके हो
इश्क का फर्क नहीं दर्द ए- दिल की उलझन है
मेरे रहते तेरी, तेरे रहते मेरी भटकी हुई सी धड़कन है

जो लड़कपन में देखे वो ख्वाब अधूरे तो नहीं हो
तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो.....

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