सारे सुर फीके लगते है
भाता कोई मीत नहीं है
तुम थे तो संगीत मधुर था
तुम नहीं तो कोई गीत नहीं है
सांझ में दिखती ना लाली
चंदा की चुनर भी काली
फूल लगे जैसे कुम्हलाए
बेकस मन को क्या समझाए
तड़प तड़प कर याद करे बस
दुखते मन की रीत यही है
तुम थे तो संगीत मधुर था
तुम नहीं तो कोई गीत नहीं है
साहिल पे आकर लहरें भटके
कही नेपथ्य में नैना अटके
कोई मुसाफिर बंजारा सा
भटका पंछी आवारा सा
खुशियाँ आने से घबराएं
गम होकर बैठे ढीठ यही है
तुम थे तो संगीत मधुर था
तुम नहीं तो कोई गीत नहीं है
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I would like to translate this poem
good, try writing more. try to read my Radha series. comment & Thanks