Shayad Yahi Pyar Hai Poem by Vikas Kumar Giri

Shayad Yahi Pyar Hai

जब से तुम रूठी हो तब से दिल
ये टुटा है
अब मैंने जाना है लोग इसमें क्यों बीमार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|

जबसे तुमसे ना मिला हूँ ना नींद है बस खुमार है
ना जाने ये कैसा पागलपन, कैसा ये बुखार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|

जबसे ना देखा हूँ ना चैन ना क़रार है
ज़हर जुदाई का डस रहा बार-बार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|

तुझको पालू तुझे अपना बना लू
मेरे दिल की यही पुकार है
कब तेरे से मिलु कैसे तुझको को
मनाऊ
तुझसे मिलने के लिए मेरा दिल ये बेक़रार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|

विकास कुमार गिरि

Tuesday, December 6, 2016
Topic(s) of this poem: love
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Vikas Kumar Giri

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Laheriasarai, Darbhanga
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