सिर्फ इन्तेजार Sirf Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सिर्फ इन्तेजार Sirf

सिर्फ इन्तेजार

ना कोई रोक पायेगा हमें कहने के लिए
आज अन्धकार से उजाले में जाने के लिए
निश्चय किया है आज नये साल के उपलक्ष्य में
हर इंसान को ढाल ना है इसी परिपेक्ष्य में।

नए साल का यही है पैगाम
ना रहे कोई इसी से अनजान
हम वैसे ही गुजार चुके है कई साल!
नहीं होने देंगे आगे से और बेहाल।

किसी का भला ना कर सके तो भी को बात बही
बीत चूका है बहुत समय अब आगे से कोई रात नही
नहीं सोचेंगे जगकर उन बीते पिछले पलों को
बस यही याद रखेंगे 'क्या करना है अब आगे को'?

टाटा, बिरला हम है ही नहीं
राजा भोज और रंक थे सही
हम ये सोचकर बारबार दुखी नहीं रह सकते
कोई बढ़ रहा है आगे तो उसे नहीं रोकते।

में तो पा लूंगा अपनी मंज़िल
नहो होने दूंगा जिंदगी बोझिल
कोई कुछ भी कहे, मुझे बढ़ना है आगे
जिसके जो सोचना है सोचे ओर अपना रंग आलापे।

किस्मत में लिखा है खाना ठोकर
तो फिर जीवन हो जाएगा बेकार
ना अपनों से मिले गा प्यार
ओर हम रह जाएगे करते सिर्फ इन्तेजार।

सिर्फ इन्तेजार Sirf
Sunday, October 30, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 31 October 2016

govidnd singh rao Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 31 October 2016

welcoem reema singh Unlike · Reply · 1 · Just now · Edited

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Mehta Hasmukh Amathalal 30 October 2016

किस्मत में लिखा है खाना ठोकर तो फिर जीवन हो जाएगा बेकार ना अपनों से मिले गा प्यार ओर हम रह जाएगे करते सिर्फ इन्तेजार।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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