स्वर्ग हो जाय
Wednesday, September 12,2018
6: 15 AM
टूटी हुई छतरी
भीग रही चुनरी
मौक़ा था सुनहरा
सब कुछ लग रहा था हरा हरा।
मौसम की देखो तो नजाकत
कहाँ लेनी थी किसीकी इजाजत?
सब कुछ तो था सामने!
खड़े तो थे हम आमने सामने।
बाहर जाओ तो भी भीगते
अंदर रहकर भीसोचते
क्यों बाहर जाया जाय?
बस एक दूसरे में समा जाय।
वैसे तो बहाना नहीं चाहिए
बस मिलते रहना चाहिए
एक दूसरे के प्रति समर्पण
यही तो है असली तर्पण।
दिल मिले तो स्वर्ग हो जाय
उसकी कल्पना मात्र से ही जनम सफल हो जाय
बस एक दूसरे में समा जाय
ना दिल टूटे और नाही मन दुखी थाय।
मैं अपलक उसे देखता ही रहा
मन ही मैं अपनी बनाता रहा
एक संजोग था, एक बहाना था
बस कल्पना में सजाना था।
मुझे नाही बिजली से डर लगा
और नाही वारिश से तन भीगा
बस मन ही मन संवारता गया
अपने सपनों को संजोता गया।
हसमुख अमथालाल मेहता
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मुझे नाही बिजली से डर लगा और नाही वारिश से तन भीगा बस मन ही मन संवारता गया अपने सपनों को संजोता गया। हसमुख अमथालाल मेहता