तेरा हर सच
तेरा हर सच मुझे डरा रहा
मन को मुश्किल दौर से गुजार रहा
तेरी हां सुनने में मेरे कान तरस गए
जैसे काले बादल बिन बारिस बरस गए।
तेरा हर कदम मुझे याद दिला रहा
मेरे विश्वास को डगमगाकर हिला रहा
मेरे दिल ने हरबार मुझे नकार दिया
बहुत मशक्कत करेने के बाद भी स्वीकार नहीं किया।
बस एक ही बात का सीला है
मैंने प्रभु से पूछा 'ये क्या लीला है'?
क्यों में पीछे भागा जा रहा हूँ?
और उज्जवल भविष्या की कल्पना करता रहता हूँ।
क्या सच में इतनी ताकत होती है?
क्या उसी में ही शानो शौकत होती है?
मुझे मानना पड़ा इस सत्य को!
देना पड़ा वजूद महत्व को।
मै भी झूठ को नकार नहीं रहा
पर फिर भी किश्ती पे सवार रहा
उसका चेहरा बहुत मासूम था
बस मेरा चेहरा ही गुमसुम था।
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मै भी झूठ को नकार नहीं रहा पर फिर भी किश्ती पे सवार रहा उसका चेहरा बहुत मासूम था बस मेरा चेहरा ही गुमसुम था।