तेरी ही आस...Terihi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

तेरी ही आस...Terihi

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तेरी ही आस
गुरूवार, ८ नवम्बर २०१८

प्रभु तेरी ही हैआस
न करना मुजे निरास
मुझे नहीं आता जगत रास
में अलग से पाना कुछ कर पाता काश!

कर्म है मेरी मुड़ी
हर कोई यातनाए उस से जुडी
में हरदम उसी सोच में डूबा रहता
और अपने को निसहाय पाता

सादगी मेरा है संकल्प
क्योंकी में जानता जीवन है अल्प
थोड़े समय में जीवन सार्थक करना है
प्रभु के दर्शन भी करना है।

नहीं चाहिए मुझे जूठी शान
नहीं चाहिए मुझे खोखले सन्मान
प्रभु सिर्फ आपकी ही हो आन
आपको पाकर हो जाओ में पावन।

ना एश्वर्य की खवाइश है ना दौलत की
बस जपनी है माला प्रभु की
मुझे अन्धकार से उजाले की और ले चलो
अपनी ही दुनिया में प्रभि मुझे समा लो

हसमुख मेहता

तेरी ही आस...Terihi
Thursday, November 8, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 08 November 2018

ना एश्वर्य की खवाइश है ना दौलत की बस जपनी है माला प्रभु की मुझे अन्धकार से उजाले की और ले चलो अपनी ही दुनिया में प्रभि मुझे समा लो हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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