थोड़ा सा ज्ञान Thodaa Saa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

थोड़ा सा ज्ञान Thodaa Saa

थोड़ा सा ज्ञान

गुण होते कम
और अवगुण दिखते सरेआम
हो जाता कत्लेआम
फिर कहाँ रहती आन, बान और शान।

बस्ती बस्ती हम फिरते
लोगों को बार बार यही पूछते
कैसे दिन है और कैसे कटते?
सब एक ही बात बताते रोते रोते।

ना जान है ना शान है
बस चारो और अपमान है
ना हम रोटी खा सकते है
और नाही खिला सकते है।

हम सकते में आ गये सुनकर
ये लोग तो ला देंगे हमें चक्कर
बात को उलटा समजा रहे है
करनी और कथनी का भेद समजा रहे है।

जनता जनार्दन है पर एक अड़चन है
भला बुरा सब समझते है
बातें भी मीठी मीठी करते है
लताड़ सुनकर खी खी हंस भी लेते है।

ले लो एक चीज का संज्ञान
आप खुद रहो अनजान
ना गंवाओ बेकार में जान
बस डालते रहो मुर्दे में थोड़ा सा ज्ञान।

थोड़ा सा ज्ञान Thodaa Saa
Tuesday, November 22, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 23 November 2016

jairam tiwari ji Unlike · Reply · 1 · Just now 7 minutes ago by hasmukh amathalal | Reply

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Mehta Hasmukh Amathalal 23 November 2016

xwelcome haresh joshi Unlike · Reply · 1 · Just now 7 minutes ago

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 22 November 2016

ले लो एक चीज का संज्ञान आप खुद रहो अनजान ना गंवाओ बेकार में जान बस डालते रहो मुर्दे में थोड़ा सा ज्ञान।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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