उज्जवल कामनाए Ujjaval Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

उज्जवल कामनाए Ujjaval

उज्जवल कामनाए


मुझे पसंद आया
सही समज में आया
हिंसा से कुछ हांसिल नहीं होता
विपरीत इस से मन विचलित हो जाता।

एक ही उपाय
सब का एक ही अभिप्राय
आप रहोगे मृतप्राय
यदि नहीं ढूंढोगे दुसरा पर्याय।

जीवन को बनाओ पथदर्शिनी
मानुनि और अपनी मार्गदर्शिनी
कोई भी सफलता दूर नहीं जाएगी
जीवन में जरूर से सुखचैन लाएगी।

किसीको धुतकारा और किसीको पुचकारा
ये काम नहीं है तुम्हारा
'द्वेष और राग' जीवन में प्रवेश नहीं पाने चाहिए
बस समभाव और क्षमायाचना ही उद्देश्य होना चाहिए।

अपने भीतर झांककर देखो कभी
सुखचैन और शांति की नहीं होगी कमी
वास्तविक जीवन से दूर घंटियाँ सुनाई देगी
प्रभु के दर्शन से उज्जवल कामनाए प्रज्वलित होगी।

ओशो की यही दीक्षा थी
हमारी भी यही शिक्षा है
जीवन में कोई कसर नहीं रह जाय
मनसा का हनन हो ये तो पश्चाताप अभिशाप ना बन जाय

उज्जवल कामनाए    Ujjaval
Tuesday, October 10, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 10 October 2017

ओशो की यही दीक्षा थी हमारी भी यही शिक्षा है जीवन में कोई कसर नहीं रह जाय मनसा का हनन हो ये तो पश्चाताप अभिशाप ना बन जाय

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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