अनमोल उपहार... Uphaar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अनमोल उपहार... Uphaar

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अनमोल उपहार
सोमवार, ४ फरवरी २०१९

प्रभु आपने दिया अनमोल उपहार
मैंने किया सहर्ष स्वीकार
मैंने करना है सद्गुणों का अंगीकार
आपका सदैव रहेगा उपकार।

प्रभु, कहते है मानवजीवन उच्च
यहाँकोई नहीं नीच और उच्च
सभी के दिलों में आप बसते है
आपकी ही किरपा से बच्चे भी खेलते है।

प्रभु, कहाँ हम भटक रहे होते
और जिंदगी बिताते होते
हम तो यह जीवन पाकर धन्य हो गए
आपका यह"उपहार'पाकर हम तो जीवनसागर तैर गए।

ना रखा होता आपने धड़कता दिल
और ना होता हमारा इंसानों से मेल
हम ना रख पाते इंसानी रिश्ता
आप ही हो गए हमारे फरिश्ता।

जीवनभर का ये रहेगा सदैव उपकार
इसके सरीखा ना होगा कोई उपहार
हम सर झुकाए बारबार
आपकी किरपा अपरम्पार

हसमुख मेहता

अनमोल उपहार... Uphaar
Monday, February 4, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 04 February 2019

जीवनभर का ये रहेगा सदैव उपकार इसके सरीखा ना होगा कोई उपहार हम सर झुकाए बारबार आपकी किरपा अपरम्पार हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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