उसकी कोख में Uski Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

उसकी कोख में Uski

उसकी कोख में

एक और सपूत सो गया
सब सपने अपने साथ ले गया
पर नाम बहुत ऊंचा कर गया
भारत माँ की उत्कृष्ट सेवा कर गया।

मुझे नहीं पता और कितने बलि चढ़ेंगे?
और कितनी शहादतें हम देते रहेंगे?
माँ भारती मांग रही है
कितनी माँ ओ के सुहाग मिटा रही है?

हमारे भीतर का अवलोकन आवश्यक है
सब जानते है पर मुक प्रेक्षक है
हमारे भीतर के भेदी काम ख़राब कर रहे है
हम तो एक ही हिन्दू राष्ट्र है वो सब मटियामेट कर रहे है।

हम ने धुरा ऐसे लोगों को सोंप रखी थी
वो हमारे कभी नहीं थे और उनकी नियत ख़राब थी
आज हम जो रक्त बहा रहे है
वह उसीका नतीजा है और आंसू बहा रहे है।

कोन कब जाएगा कह नहीं सकते
जाना तय है बस समय नहीं बता सकते
माँ तुझे सलाम हम तो छोड़ चले
आपने अब सोचना है वतनवाले।

बन ना रखवाला अगर हो सकेतो
पंछी बन के उड़ जाना उड़ सकोतो
माता का सदैव ऋण रहेगा
उसकी कोख में सदा आराम मिलेगा।

उसकी कोख में Uski
Tuesday, February 14, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 14 February 2017

welcome.................Jobelyn Dela Cruz Cuenta

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Mehta Hasmukh Amathalal 14 February 2017

Aasha Sharma No automatic alt text available. Unlike · Reply · 1 · 1 min

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Mehta Hasmukh Amathalal 14 February 2017

welcome atul p soni Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 14 February 2017

बन ना रखवाला अगर हो सकेतो पंछी बन के उड़ जाना उड़ सकोतो माता का सदैव ऋण रहेगा उसकी कोख में सदा आराम मिलेगा।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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