वफ़ा और बेवफा Vafaa Or Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

वफ़ा और बेवफा Vafaa Or

वफ़ा और बेवफा

मकसद एक ही है
मारना और मरना ही है
खरबूजा छुरी पर गीरे
या छुरी खरबूजे पर गीरे।

वफ़ा और बेवफा
बस नहीं कोई समझौता
एक ही सिक्के के दो पेहलू
ना हो उसमे मर लु या मार लु।

कई बार हम वजह बन जाते है
प्यार के गलत मतलब निकाले जाते है
कोई कहे 'औरत एक खिलौना है'
उसके साथ प्रेम एक आंखमिचौना है।

भले ही हम बेवफ़ा होने की वजह बन जाय
हमारे चर्चे चौरा और चौटा में हो जाय
हम उसको कभी लक्ष्य में नहीं लेंगे
शायद सोचने में वो सही होंगे।

हमने किया प्यार सही जानकार
पर वो निकले बड़े अदाकार
हमारा उनसे मेल नहीं खाया
बस फिर तो हमने खता ही खाया।

शिकार करने निकले थे
शिकार खुद हो गए
अब हमें पछतावा होने से क्या फायदा?
वो तो मुकर ही गए ना कर के वादा।

वफ़ा और बेवफा  Vafaa Or
Wednesday, December 21, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 21 December 2016

Tarun H. Mehta welcome Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 21 December 2016

शिकार करने निकले थे शिकार खुद हो गए अब हमें पछतावा होने से क्या फायदा? वो तो मुकर ही गए ना कर के वादा।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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