वीरानी रातें
सोमवार, २२ अक्टूबर २०१८
रात हो गई वीरानी
बढ़ा गई मेरी बैचेनी
मन को होने लगी और भी हैरानी
ये दुनिया लगी मुझे बैमानी।
पता नहीं कौनसी बात आ गई मन में
बारबार सिहरन पैदा कर गई तन में
ना मन का उद्वेग शांत हुआ
और नाही बैचेनी का अंत हुआ।
उसका कहना ही दिल को छलनी कर गया
मुझे सोचने पर मजबूर कर गया
उस में बड़प्पन जरूर था
और बात में दम भी तो जरुर था।
जिंदगी के फैसले जल्दी में नहीं होते
समय लगता है बात को समझते समझते
कई लोग तो कहते रहते है रोते रोते
नहीं बनता उन्हे सम्हलते सम्हलते।
ये सोचना बिल्कुल जरूरी है
कई बार उसकी मजबुरी हो जाती है
कई बातें दिल को खलती है
कई बातों को दिल से समझना पड़ता है।
हसमुख अमथालाल मेहता
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ये सोचना बिल्कुल जरूरी है कई बार उसकी मजबुरी हो जाती है कई बातें दिल को खलती है कई बातों को दिल से समझना पड़ता है। हसमुख अमथालाल मेहता