विषैला मदिरापान... Vishela Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

विषैला मदिरापान... Vishela

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विषैला मदिरापान
सोमवार, ११ फरवरी, २०१९

प्रेम है अपार दरिया
ऐसा मन ने सोच लिया
मंसूबा भी पूरा हो लिया
मैंने अपनेपन का सुख पा लिया

प्यार की तुम कदर करना जानो
बात बात में किसीका दिल ना तोड़ो
हो सकेतो मन से मन को जोड़ो
कभी भी आपस में ना लड़ो।

"अभी आ रहा हूँ हो लौटकर"
घरवाले बैठे रहे राह देखकर
वापस आना कभी नसीब नहीं हुआ
बस एक सपना सा बनकर रह गया।

यह एक समाजीक दूषण है
परिस्थिति भी विषम है
उनका कोई नहीं है आंसू पूछनेवाला
मदिरा बन गया है मोत देनेवाला।

इस मुल्क में एक बड़ा हादसा हो गया
विषैली मदिरा ने कितनो को ही मौत की नींद सुला दिया
शराब की घूंट ने भगवान् को प्यारा बना दिया
कइयों की जिंदगी को उजाड गया।

मदिरापान करना पुरानी प्रथा है
प्रथाए अन्याथा बहुत सी है
गरीब लोग इसमे ज्यादा लिप्त है
अच्छे लोग इस से अलिप्त रहते है।

हसमुख मेहता

विषैला मदिरापान... Vishela
Monday, February 11, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 11 February 2019

bhadresh mehta 1 Edit or delete this Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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