'विष्णुपद' छंद
(चार चरण प्रति चरण सोलह, दस
मात्राओं पर यति, चरणान्त में गुरु)
चार चरण का छंद 'विष्णुपद', स्वामी हरि जग़ के|
सोलह दस पर यति है शोभित, अन्तहिं गुरु सबके||
नीर बहे जब भक्ति भाव में, दर्शन मन तरसे|
शीश झुका तब दिखे विष्णु पद, नयन सुधा बरसे||
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