ग़ज़ल 1
२१२१ २१२२ २१२
फायलातुन फायलातुन फायलुन
(बहरे रमल मुसद्दस मक्तुअ)
प्यास जैसे बढ़ रही गागर को देख
ज़िंदगी से प्यार कर दिलवर को देख
हो गयी फिर से शुरू अब गुंडई
वक्त के बदले हुए तेवर को देख
मुफलिसी में शायरी का लें मज़ा
मुस्कुराते हैं फटी चादर को देख
ढूँढने सिग्नल चढ़े हैं पेंड़ पर
आसमां को चूमते टावर को देख
आज भटके दिल को रहबर क्या मिला
चाँदनी तो खिल गयी गयी ‘अम्बर' को देख
-अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर'
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