'कुंडलिया' छंद
नैना बरसे नीर बन, दुनिया जो दे दाँव.
चलकर नीचे जा रहे, हैं पानी के पाँव.
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'विष्णुपद' छंद
(चार चरण प्रति चरण सोलह, दस
मात्राओं पर यति, चरणान्त में गुरु)
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ग़ज़ल
(बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
मफईलु फायलातु मफाईलु फायलुन
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सरस्वती वंदना
शुचि शुभ्रवसना शारदा वीणाकरे वागीश्वरी,
कमलासनी हंसाधिरुढ़ा बुद्धिदा ज्ञानेश्वरी,
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