ग़ज़ल
(बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
मफईलु फायलातु मफाईलु फायलुन
२२१ २१२१ १२२१ २१२)
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कहते तो पीठ पीछे सभी लोग खार हैं
समझे तो कोई हम तो सरापा ही प्यार हैं
रिश्वत का बोलबाला बढ़ा इस कदर के दोस्त
वो लोग आ जुड़े हैं जो ईमानदार हैं
कैसे चलेगी भाइयों यूपी में गुंडई
मौजूद कैबिनेट में कहाँ दागदार हैं
इल्म-ओ-अदब का साथ ज़रा आजमाइए
दौलत न हो जो साथ तो भी मालदार हैं
पकड़े गए जो कह दिया है लीला राम की
‘अम्बर' को देख रोने लगे ज़ार-ज़ार हैं
-अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर'
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