वो मार खा जाता है Vo Maar Khaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

वो मार खा जाता है Vo Maar Khaa

वो मार खा जाता है

हम ठहरे आम इंसान
पर रखे ठाठ और शान
ना सहे कभी किसी की गुस्ताखी
क्योंकि प्रतिभा ही है बहुमुखी।

हमें वो लोग पसंद है
जो हँसते मंद मंद है
अपनी मुस्कराहट से दिल जीत लेते है
और धीरे से अपने मन की बात कह देते है।

जैसे हम सादे
वैसे ही है हमारे वादे
मन में है पक्के इरादे
कभी भी किसीको जूठा करार ना दे दे।

ना बने कभी भी किसी का सरदर्द!
बांटे दर्द, बनके हमजोली या हमदर्द
इसी को ही हम माने अपना धर्म
और करते रहें सच्चा कर्म।

मुश्किल है मानवधर्म को निभाना
दूसरों को गले से लगाना और अपनाना
कहने को और लिखने को आसान है
क्योंकि गलती करता ही इंसान है।

गलती का आभास जल्दी ही हो जाता है
जब कुदरत की मार का अंदाजा आ जाता है
हर दांव जब उल्टा पड़ने लगता है
और आसान चीज़ भी खतरे की घंटी बजाता है।

जब कुदरत की मार का अंदाजा आ जाता है
हर दांव जब उल्टा पड़ने लगता है
और आसान चीज़ भी खतरे की घंटी बजाता है
मन ही मन याद कर के बारबार रुलाता है।

मन में भय पैदा हो जाता है
हर बातपर मन को सहलाता है
कहीं पे रुकता है और कहीं पे चल देता है
यहीं पे वो मार खा जाता है।

वो मार खा जाता है Vo Maar Khaa
Saturday, November 19, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 02 December 2016

Santosh Kumar Sharma Behtareen Unlike · Reply · 1 · 1 hr

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Mehta Hasmukh Amathalal 02 December 2016

welcome santosh kumar Unlike · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 21 November 2016

sayda layla Unlike · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 19 November 2016

मन में भय पैदा हो जाता है हर बातपर मन को सहलाता है कहीं पे रुकता है और कहीं पे चल देता है यहीं पे वो मार खा जाता है।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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