यही पैगाम है.. Yahi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

यही पैगाम है.. Yahi

यही पैगाम है

प्रेम का आँखों में छलकना
फिर उसे जताना यही मानवता का
यही मानवता श्रेष्ठ अंग है
और इसके लिए हीजंग है।

कोई दुराचारी नहीं होता
सब के अंदर प्यार है बसा होता
जो व्यहार में दिखता
हर दिशा में पहल करता

जो हरदम पशु प्राणिओ के लिए प्यार जताता
दुनिया को नयी राह दिखाता
सभी के दिलो में आशा की किरण जगाता
सब लोग उसे सराहते और कहते यही है "मानवता"

आपके दर्शन के हम अभिलाषी
जीवन है हमारा संतोषी
पर फिर भी भाव है दूसरों के प्रतिऔर रहती है जिज्ञासा
यह स्वभाव है हम में सहसा।

यदि दिल हमारा कोमल और हितैषी है
ना कभी लालसा भरा और द्वेषी है
समझो जीवन हमारा समर्पित है
हम कभी भी उसके विपरीत चीज़ के समर्थक नहीं है।

जीवन एक ही बार मिलेगा
नहीं किया अच्छा तो पछतायेगा
चिड़िया जब उड़ जाएगी तो रुदन का क्या फायदा?
कुदरत का यही पैगाम है और एक की है कायदा।

Pic: Nanda prakash aas

यही पैगाम है.. Yahi
Saturday, November 4, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 04 November 2017

welcome Nanda praklash aas Like · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 04 November 2017

जीवन एक ही बार मिलेगा नहीं किया अच्छा तो पछतायेगा चिड़िया जब उड़ जाएगी तो रुदन का क्या फायदा? कुदरत का यही पैगाम है और एक की है कायदा। Pic: Nanda prakash aas

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success