हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ Poem by Vikas Kumar Giri

हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ

Rating: 2.5

भूखे, गरीब, बेरोजगार, अनाथो और लाचार की दास्तान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

एक ही कपड़े में सारे मौसम गुजारनेवाले
सूखा, बाढ़ और ओले से फसल बर्बाद होने पर रोने और मरनेवाले
कर्ज में डूबे हुए उस अन्नदाता किसान की जुबान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

मैं भगत, सुभाषचन्द्र और आज़ाद जैसा भारत माँ के सपूत तो नहीं
लेकिन इन्हें सिर्फ जन्म और मरण दिन पर याद करने वाले और आँशु बहाने वाले,
उन्हें इन सपूतों की याद दिलाने 
फिर से बलिदान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

मजहब के नाम पर ना हो लड़ाई
जाती धर्म के नाम पर ना हो किसी की पिटाई
सब मिल-जुलकर रहे भाई भाई
जाती धर्म से ऊपर उठने के लिए इम्तिहान लिखने आया
हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

सीमा पर देश के लिए लड़नेवाले
अपनी जान की परवाह किए बिना
देश पर मर मिटने वाले
मैं देश के ऐसे वीरों को सलाम लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

सब के पास हो रोज़गार और अपना व्यापार 
देश मुक्त हो ग़रीबी, बेरोजगारी, बलात्कार और भष्ट्राचार 
मैं देश के लोगो के सपने और अरमान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

विकास कुमार गिरि

Tuesday, November 29, 2016
Topic(s) of this poem: country
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Hindi Poem on India
COMMENTS OF THE POEM
Shishir Kant 15 February 2017

It is one of the best poems, written by you. Why it is best because it reveals the Indian social status. A fine attempt of writing new ideas.

0 0 Reply
mukesh kumar roy 16 December 2016

wonderful poem

1 0 Reply
Rajnish Manga 04 December 2016

इस कविता में वर्तमान भारतीय समाज को दरपेश सभी प्रमुख समस्याओं का प्रभावी चित्रण किया गया है. बहुत अच्छी रचना. धन्यवाद, विकास जी.

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Vikas Kumar Giri

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Laheriasarai, Darbhanga
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