आज कुछ खास है
आज तो फिजाऐ बदली-बदली हैं,
अलमस्त सुनहली धूप धरती पे है,
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"वृक्ष"
सूरज तुम्हें ऊर्जा दे रहा है,
वायु प्राण दे रही,
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"डाली पेड़ की"
सामने खड़े पेड़ की
एक डाली क्यों सूखी है?
उसे कोई संताप है
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"बदरंग मानवता"
पूरब से निकलकर पश्चिम में छिप जाना,
शगल तुम्हारा हो गया है।
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"पागलपन"
पागलपन की भी कोई हद होती है,
ठीक है कि हम उसे पाना चाहते हैं,
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"अत्याचार"
हमें मनोरंजन का अधिकार तो है,
पर क्रूरता का हक नहीं,
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"असहिण्णुता"
समाज में यह क्या हो गया है,
मामूली-मामूली बातों पर झगड़ना,
प्यार व समरस्ता खत्म हो गई,
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"मजबूरी"
रात के वक्त बच्चा जिद करता है,
हमें जिद पूरी न कर पाने का मलाल,
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