'कुंडलिया' छंद
नैना बरसे नीर बन, दुनिया जो दे दाँव.
चलकर नीचे जा रहे, हैं पानी के पाँव.
हैं पानी के पाँव, पकड़ कर मांगें माफी.
सूख रहे जल स्रोत, सजा इतनी ही काफी.
अम्बरीष ले रोक, हृदय को तब हो चैना.
दिल का धो दें मैल, बरसते जो हैं नैना..
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem