ले ली जीवन ने अग्नि परीक्षा मेरी।
मैं आया था जग में बनकर
लहरों का दीवाना,
यहां कठिन था दो बूंदों से
...
इष्क़ का अदना सा मन्ज़र देखिये।
एक क़तरे में समंदर देखिये॥
मुझ पे हंसता है ज़माना आजकल,
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बीत गयी बातों में,
रात वह खयालों की,
हाथ लगी निंदयारी जिंदगी,
आंसू था सिर्फ एक बूंद,
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B.Tech. in Agril Engg. From College of Agricultural Engineering, JNKVV, JABALPUR, MadhyaPradesh, India.)
अग्नि परीक्षा
ले ली जीवन ने अग्नि परीक्षा मेरी।
मैं आया था जग में बनकर
लहरों का दीवाना,
यहां कठिन था दो बूंदों से
भी तो नेह लगाना
पानी का है वह अधिकारी
जो अंगार चबाए,
ले ली जीवन ने अग्नि परीक्षा मेरी
सुनते हो?
पानी का है वह अधिकारी
जो अंगार चबाए,
अंतरतम के शोलों को था
खुद मैंने दहकाया,
अनुभवहीन दिनों में मुझको
था किसने नहलाया,
भीतर की तृष्णा जब चीखी
सागर, बादल, पानी,
बाहर की दुनिया की लपटों ने घेरों
ले ली जीवन ने अग्नि परीक्षा मेरी।
काठ कोयला जल कर बनता
और कोयला राखी,
छिपा कहीं मेरी छाती में
था स्वर्गों का साखी,
दो आगों के बीच बना कर
नीड़ रहा जो गाता,
ज्वाला के दिन में, निशि में धूम्र-घनेरी।
ले ली जीवन ने अग्नि परीक्षा मेरी।
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