बेचैन वो रहता है मेरे पास से जाके
देखा है कई बार मुझे उसने भुला के
आने से तेरे रंग बदल देगी तमन्ना
अल्फ़ाज़ बदल जायेंगे अये दोस्त दुआ के
ये बर्क़ ये गुल और चमकते हुए तारे
सब जलवे हैं ये आपके हंसने की अदा के
मैंने भी बताया कि मेरा हौसला क्या है
तेवर तो बहोत तेज़ थे तूफाने बला के
ज़ाहिर हुए जब राजे मोहब्बत तो खलिश क्या
जाता है तो जाये कोई दामन को छुड़ा के
हम क़ूवते परवाज़ में सानी नहीं रखते
तोड़े हैं जो दर बंद थे हमने ही खला के
ये मान लिया हम तो हैं नाकामे मोहब्बत
तुम और किसी से भी दिखाओ तो निभा के
बेबाक निगाहों में मेरी ऐसी कशिश थी
वो भूल गए आज तो अंदाज़ हया के
उन आँखों में आंसू थे मेरा हाल जो देखा
मंज़िल ने क़दम चूम लिए अबलपा के
वो रोज़ सुहैल एक नई छेड़ करे है
अलफाज़= शब्द, बर्क़ =बिजली, खलिश =बेचैनी, क़ूवते परवाज़ =उड़ने की ताक़त, सानी=दूसरा, खला =स्पेस, बेबाक =बेझिझक, कशिश =आक्रषण, आबलापा, जिसके पाओं में छाले हों,
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बहुत बहुत शुक्रिया, जनाब सुहैल साहब. यह एक बेहतरीन ग़ज़ल है जो दुनिया-ए-मुहब्बत के न जाने कितने ही अनदेखे वर्क उजागर कर देती है. 'हम क़ूवते परवाज़ में सानी नहीं रखते / तोड़े हैं जो दर बंद थे हमने ही खला के'