लगता है जीया Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लगता है जीया

Rating: 5.0

लगता है जीया
Friday, October 9,2020
6: 56 PM

मेरा तो लगता है जीया
मुझे बहुत प्यारी लगती ये दुनिया
भगवान ने क्या मेहनत करके उसे बनाया
और हमें भुगतने के लिए मनुष्य बनाया।

क्या कमी है इस दुनिया में?
बस सवार होकर चलना है नैया में
अपना ख़याल खुद रखना है
बाकी सबको भी खुश रखना है।

अपने लिए जीए तो क्या जीए!
अपने सपने संजोए और बाकियों के बरबाद किए
अपना ही सोचा बाकियों का ले डूबा
यही तो है जीवन का अजुबा।

मुझे अपने पर गर्व है
संसार हमारे लिए एक पर्व है
यदि हम ज़िंदा होते हुए भी निर्जीव है
तो फिर सजीव कौन है?

गम में डुब जाना
दूसरों को दुखी करना
अच्छायों से मुँह मुह मोड़ लेना
फिर ये कहना की संसार से हमें क्या लेना देना?

संसार एक सागर है
और भयरूपी अजगर भी है
एक बार पकड़ में ले लिया तो जाना तय है
पर आप सजग है तो उसका क्षय भी तय है।

क्या वजूद हो सकता है आपका?
जब डर लगता है आपको हार का
डगर डगर पर आप खो देते हो विश्वास!
रुक जाती है डर के मारे आपकी सांस।

ऐसा जीवन हमें अप्रिय है
हम समजते है की जीवन व्यय है
मानो हम खाने के लिए जी रहे है
मौजमस्ती को छोड़कर गम को गले लगा रहे है।

डॉ. जाड़िआ हसमुख

लगता है जीया
Friday, October 9, 2020
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 09 October 2020

Bahut khoob.... Jeevan jeene ka naam hai, murda dil bhi kya khak jiya karte hain? ? ? Jab Upar Wale se lau lag jaati hai tab jeena dushwar hota hai. Meera Bai, Sant, Gyani sab uski lagan me sansar tyag diye, dusron ki khusi me apni khushi dhundte rahe... Aapki kavita Jeevan ko khul ke jeene aur mauj masti sikha rahi hai....10******* Jeevan ke do pehlu...

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Mehta Hasmukh Amathalal 09 October 2020

मानो हम खाने के लिए जी रहे है मौजमस्ती को छोड़कर गम को गले लगा रहे है। डॉ. जाड़िआ हसमुख

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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