उनके शहर Poem by Priya Guru

उनके शहर

हम गये थे उनके शहर, रूठकर सब ख्वाबो से अपने
मिटाकर इश्क़ के लहूँ को, दरबक्श वक़्त से मुकरकर अपने
जीले-इलाही देखी क्या उनकी, या फिर कोई पहरा था उनकी अदाओं का हम पर
इशारे तोह थे सब इस ओर पर, एक उठी निगाह न बैठी सायें पर अपने |

Sunday, October 16, 2016
Topic(s) of this poem: ignorance,longing
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