शायद यहीं मोहब्बत हैं, तेरे मेरे दरम्यान Poem by Sharad Bhatia

शायद यहीं मोहब्बत हैं, तेरे मेरे दरम्यान

Rating: 4.0

शायद यहीं मोहब्बत हैं, तेरे मेरे दरम्यान

कि इस कदर मैं तुझसे मोहब्बत करता हूँ,
कि जब तू रात मे सोती हैं मैं तुझे निहारताहूँ।।

चाहता हूँ यह सिलसिला जिंदगी भर यूँही चलता रहे
मैं तुझे हमेशा ऐसे ही निहारता रहूँ और तुझे पता भी ना चले ।।

कि सुबह कहा फुर्सत हैं तुझे निहारने की,
तुझसे दो पल बात करने की ।।

और रात का आलम यह है कि तू बिस्तर पर गिर करअपने आप को नींद के हवाले कर देती है,
मैं यूँही देखता रहता हूँ और तू धीरे से करवट बदल लेती है ।।

अब तुझे निहार कर अपनी मोहब्बत का इज़हार कर जाता हूँ,
तू सोती रहती है और मैं तुझे चुपचाप निहार जाता हूँ ।।

शायद यही मोहब्बत हैं जो तेरे मेरे दरम्यान हैं,
तू सुकूं से सोती हैं और मैं तुझे बस सुकूँ से निहारता रहता हूँ ।।

जब भी देखता हूँ तुझे, तेरे चेहरे पर कितना नूर छलकता हैं,
शायद यह कुदरत का कोई जादुई करिश्मा लगता हैं।।

नहीं होती हिम्मत तुझे जगाने की,
शायद अपनी दिल की बात कहने की।।

जब तुम सुबह उठती है,
तो मैं सोने का नाटक कर जाता हूँ,
शायद तुम्हें दिखाने के लिए आँखे बंद कर जाता हूँ।

तुझेकैसे बताऊँ की मैं तुझसे कितना प्यार कर जाता हूँ,
रात भर तेरे बारे में सोच जाता हूँ पर कह नहीं पाता हूँ।।

शायद तेरे मेरे दरम्यान यहीं मोहब्बत हैं,
तू बोलती बहुत हैं,
और मैं खामोश बहुत हूँ ।।

एक प्यारा सा एहसास मेरी नन्ही कलम से
(शरद भाटिया)

शायद यहीं मोहब्बत हैं, तेरे मेरे दरम्यान
Tuesday, September 1, 2020
Topic(s) of this poem: emotions,feeling,love and dreams,relationships,relax,thought
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 01 September 2020

Bolti bohut ho tum Khamoshi oodhe hoon mai Kamaal ka hai ye gathbandan Na wo badhe aage Aur na hum jhukte neeche Samajhne ke koshi kare firbhi Aasman aur zammi bhi milte chitij me Kaun jane bahar kidhar se aa jaye Bahut khoob aachadan vayaktikaran.

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M Asim Nehal 01 September 2020

Bahut badiya....10+++++ I quote: शायद तेरे मेरे दरम्यान यहीं मोहब्बत हैं, तू बोलती बहुत हैं, और मैं खामोश बहुत हूँ ।।

1 0 Reply
Rajnish Manga 01 September 2020

मुहब्बत के अनगिनत रंग हैं. उन्हीं में से एक खुबसूरत रंग यह भी है. बिना बोले भी मुहब्बत ज़ाहिर हो जाती है. और जब वह अपने साथ बैचेनी की जगह सुकून ले कर आती है तो कुछ कहने सुनने की गुंजाइश ही नहीं रहती. आपकी रचना के ही कुछ अंश यह कह रहे हैं: तू सुकूं से सोती हैं और मैं तुझे बस सुकूँ से निहारता रहता हूँ ।। शायद यह कुदरत का कोई जादुई करिश्मा लगता हैं।।

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