बेरोज़गारी या मजबूरियां Poem by Sharad Bhatia

बेरोज़गारी या मजबूरियां

Rating: 5.0

बेरोज़गारी या मजबूरियां

बेरोज़गारी और मजबूरियों
में हम शहर आ बैठे
अपने गांव की मिट्टी को भूला
शहर की सड़कोंकी धूल से दिल लगा बैठे,
देखो, ये हम कहाँ आ बैठे...! ! !

गांव के दोस्तो से बहुत दूर
शहर में कितने दुश्मन बना बैठे
देखो, ये हम कहाँ आ बैठे...! ! !

मां के पकवानों से दूर
हम पिज़्ज़ा, बर्गर और चाऊमिन से दिल लगा बैठे
देखो, ये हम कहाँ आ बैठे...! ! !

अब वक़्त ही नहीं मिलता कि घर पर थोड़ा फोन लगाए,
माँ की तबीयत और पिताजी का हाल जान पाये ll
गांव में तो हर मोड़ पर रिश्ते बन जाते थे,
जो जिंदगी भरहमारा साथ निभाते थे ll
मगर शहर का तो हर रूप ही निराला है,
यहां तो रूम के बगल वाला भी
जान के अनजान बनने वाला है।।
कभी-कभी तो लगता है कि हम गांव छोड़ के खुद के पैरों पे कुल्हाड़ी मार बैठे,
देखो, ये हम कहाँ आ बैठे...! ! !

जानें, अनजाने में हम शहर आकर अपना सब कुछ गँवा बैठे, - -
देखो, ये हम कहाँ आ बैठे...! ! !

एक छोटा सा एहसास
शरद भाटिया

Wednesday, September 2, 2020
Topic(s) of this poem: feeling,feeling guilty
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem is for those who always think that urban lifestyle is very beautiful compared to the lifestyle of villages
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 September 2020

bahut sundar.. not easy to cope with.. clear 10 चेहरा बदला गुरूवार, ३ सितम्बर २०२० सर सलामत तो पगड़िया सारी कुदरत का प्रकोप बिगाड़ देता है व्यवस्था हमारी पर हम है तैयार निपटने को मिलझुलकर सम्हाल लेंगे सबको। डॉ जाडीआ हसमुख

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Rajnish Manga 02 September 2020

कविता की पहली पंक्ति ही उन बातों की निशानदेही कर देती है जिससे गाँव का व्यक्ति शहर में आता है. हाँ, शहर में आ कर वहां के माहौल में ढलना भी एक संघर्ष है. नास्टैल्जिया होना स्वाभाविक है पर विषाद भी होता है. कविता में इस संघर्षण को संवेदनशीलता से उकेरा गया है. धन्यवाद.

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Varsha M 02 September 2020

Every phase is important Flowing river never wonder But nurture through the path Until in sea she unite Life blooms in progression Nurture history for generation Admiring achievement special. Beautiful reflection on village life. Beautiful.

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M Asim Nehal 02 September 2020

दूर के ढोल सुहावने होते हैं, ढोल की पोल खुल जाये तब पता चलता है, एक बेहतरीन कविता शहर और गांव की ज़िन्दगी का अंतर बतलाती हुई,10++

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