मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ Poem by NADIR HASNAIN

मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ

तेरी अज़मत मुहब्बत करूँ क्या बयां
तू मेरी ज़िन्दगी तू ही दोनों जहाँ
मैं हूँ नन्हीं कलि तू मेरी बाग़बाँ
मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ


तेरी शफ़क़त मुहब्बत दुआ चाहिए
माँ के आँचल की सर पे रिदा चाहिए
प्यार-ओ-उल्फ़त की दिलकश समंदर है तू
राज़दां तू मेरी तू ही है रहनुमाँ
मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ


लाखों दुख दर्द सह कर तू हंसती रही
आग पर बनके बारिश बरसती रही
तेरे क़दमों के नीचे है जन्नत मेरी
तुझसे गुलशन में गुल तू ही है गुलसितां
मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ


फिर रही दर बदर तेरी लख़ते जिगर
तू चली क्यों गई मुझसे यूं रूठ कर
अश्क आँखों में है दिल ये मग़मूम है
अपने दिल की मैं किस्से कहूँ दास्ताँ
मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ


या ख़ुदा तूने ऐसा ये क्यों करदिया
माँ की ख़िदमत का मुझको ना मौक़ा दिया
बेसहारा अकेली हूँ बेबस हूँ मैं
ईद मेरी मेरी दीद मेरी ज़ुबां
मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ


: Nadir Hasnain

मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ
Saturday, November 26, 2016
Topic(s) of this poem: sorrow
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