नमो नमस्ते हंसते हंसते ऐसी तीर चलाई है Poem by NADIR HASNAIN

नमो नमस्ते हंसते हंसते ऐसी तीर चलाई है

नमो नमस्ते हंसते हंसते ऐसी तीर चलाई है
ऐश कैश पे करने वालों पर ये शामत आई है

इनकम टैक्स बचाने वाले घर के हैं ना घाट के हैं
एक ओर है उनके कुआँ दूजी तरफ में खाई है


देश की जनता यक़ीन है करती वादा आप निभाएंगे
स्विस बैंक से देश में वापस काला धन भी लाएंगे

ज़मी, मकां और सोना, चांदी बिज़नेस मैन का हर सामान
नक़दी है गर काला धन तो क्या वह प्योर कमाई है


अरबों रुपए लुटा रहे हैं हर प्रचार इलेक्शन में
नेताओं से कौन है आगे काले धन, करप्शन में

कब सर्जिकल हमला होगा अकाउंट विदेशी धारक पर
जैसे देश की जनता पर बेमौत क़्यामत ढाई है


लगा कर चूना उड़ा नमूना विजय माल्या हिन्द से दूर
फँसी जाल में छोटी मछली आम किसान, जनता, मज़दूर

दिन रात खड़े हैं बैंक के आगे बूढ़े, बच्चे, मर्द, जवान
बेमौत ही मरगए जिनके घर में शादी की शहनाई है


: नादिर हसनैन

नमो नमस्ते हंसते हंसते ऐसी तीर चलाई है
Sunday, November 20, 2016
Topic(s) of this poem: anger,saddened
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