हम Poem by Sursen Gaunle Anyol

हम

दुवायेँ भि आजकल दूसरेँ से माग कर दिये जाते है,
इसी लिये तो शायद कबुल भि नहीँ होते हैं कभी,
हर चिज का करोबार यहाँ करोडो पे होता हैं
इन्सान के नसीब पे दो टक्के कि खुशी भि नहीँ हैं ।।

भीड को भागता देखकर, मैं भि भागने लगा
जब थका तो सोचा, मैं भाग क्यों रहा था
जीने के नाम पर अक्सर किया हुवा काम यहाँ
शायद करने वाले को भि कभी मलुम नहीँ पड्ते ।।

Tuesday, October 4, 2016
Topic(s) of this poem: self
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Sursen Gaunle Anyol

Sursen Gaunle Anyol

Pokhara, Nepal
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