खेल रहा है वक़्त कबड्डी खींच कर एक लकीर
बचपन में हम राजा थे अब बनगए यार फ़क़ीर
कंचे कुश्ती चोर सिपाही आँखमिचौली कैरम टिप्पो
ढून्ढ रहा हूँ खेल वही और अपनी वही ख़मीर
आज़ाद थे हम बेख़ौफ़ परिंदे सोच फ़िक्र से कोसों दूर
काग़ज़ के टुकड़ों के आगे होगए कितने हम मजबूर
घर छूटा घर वाले छूटे छूटा दोस्त समाज
दिल रोता है आँखें नम हैं है बेचैन ज़मीर
लोरी सुनाती दादी नानी माँ का आँचल छूट गया
मिली जवानी ज़िम्मादारी बचपन हमसे रूठ गया
बेलौस मुहब्बत बेबाकी से मिलन हमारी होती थी
दूर थी जब तक दुनियां दारी दिल था बहुत अमीर
क्यों कैसे और कहाँ है जाना मंज़िल का कुछ पता नहीं
मसरूफ़ सभी हैं भाग दौड़ में नादिर तेरी ख़ता नहीं
कभी मदारी कभी ये सरकस जीवन एक पहेली है
दुनियां है ये माया नगरी कह गए संत कबीर
By: नादिर हसनैन
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