वो सर्द की ढलती शाम Poem by abhilasha bhatt

वो सर्द की ढलती शाम

Rating: 4.8

सर्द दिनों की
ढलती एक शाम
साफ आसमान
ढलते सूरज के बिखेरे
नारंगी रंग
कलकल बहती नर्म हवा सर्द की
अपने घरों को जाते पंछी
अपनी चहचहाती भाषा में
अपने साथियों को पुकारते
शांत सा हर तरफ़
सुकून की अनुभूति
दिल के तमाम बोझ को
हल्का बहुत करती
माथे पर पड़ी सिलवटें सारी
आहिस्ता आहिस्ता कहीं गायब हो जाती
कुछ वक्त दे जाती ख़ुद के साथ बिताने का
कईं ज़ख़्म पर मरहम की तरह थी
वो सर्द की ढलती शाम

Friday, November 25, 2016
Topic(s) of this poem: life,peace,winter,evening
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 13 April 2017

सर्दी के दिनों की शाम का मनोहारी चित्रण कमाल का है. प्रकृति और उसका मानव मन व सोच पर गहरा प्रभाव सचमुच कल्पनातीत है. इसकी जितनी तारीफ़ करें कम है. शेयर करने के लिए धन्यवाद.

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Savita Tyagi 27 December 2016

लव्ली पोयम। सर्दी की शाम का असर ही कुछ ऐसा होता है।

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Mithilesh Yadav 25 November 2016

great one mamji......... pain is something.... i think is inked in your pen....... heart touching

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M Asim Nehal 25 November 2016

सर्द में डूबी ये ढलती शाम बहुत भा गयी.......पहले आँखों में समायी फिर दिमाग़ पर छा गयी - लगा जैसे धीरे धीरे ये शाम ढलने लगी और एक सुहानी रात में बदल गयी....बहुत बढ़िया...

3 0 Reply
Abhilasha Bhatt 25 November 2016

Phir seher aai muskurati

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