सर्द दिनों की
ढलती एक शाम
साफ आसमान
ढलते सूरज के बिखेरे
नारंगी रंग
कलकल बहती नर्म हवा सर्द की
अपने घरों को जाते पंछी
अपनी चहचहाती भाषा में
अपने साथियों को पुकारते
शांत सा हर तरफ़
सुकून की अनुभूति
दिल के तमाम बोझ को
हल्का बहुत करती
माथे पर पड़ी सिलवटें सारी
आहिस्ता आहिस्ता कहीं गायब हो जाती
कुछ वक्त दे जाती ख़ुद के साथ बिताने का
कईं ज़ख़्म पर मरहम की तरह थी
वो सर्द की ढलती शाम
great one mamji......... pain is something.... i think is inked in your pen....... heart touching
सर्द में डूबी ये ढलती शाम बहुत भा गयी.......पहले आँखों में समायी फिर दिमाग़ पर छा गयी - लगा जैसे धीरे धीरे ये शाम ढलने लगी और एक सुहानी रात में बदल गयी....बहुत बढ़िया...
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सर्दी के दिनों की शाम का मनोहारी चित्रण कमाल का है. प्रकृति और उसका मानव मन व सोच पर गहरा प्रभाव सचमुच कल्पनातीत है. इसकी जितनी तारीफ़ करें कम है. शेयर करने के लिए धन्यवाद.