दुआ मागूँगा तुम्हारे लिए रब से, तुम मुस्कराना प्रिये! ! Poem by prem kumar gautam

दुआ मागूँगा तुम्हारे लिए रब से, तुम मुस्कराना प्रिये! !

मैं जागूँगा अब से रातों में तुम सो जाना प्रिये!
दुआ मागूँगा तुम्हारे लिए रब से, तुम मुस्कराना प्रिये! !

न कुछ कहूंगा तुमसे, न कोई शिकायत है मेरी,
दिल पर हाथ रख कर सो जाना, बस बिनती है मेरी,

एक आजाद पंछी की तरह गगन में घूम आना प्रिये!
दुआ मागूँगा तुम्हारे लिए रब से, तुम मुस्कराना प्रिये! !

समर्पित हूँ तुम्हारी चाहत में बस इतना जानता हूँ।
मैं अब से खुद को ही तुम संग राहों में बांधता हूँ।

चांदनी की तरह सारे जग को तुम चमकना प्रिये।!
दुआ मागूँगा तुम्हारे लिए रब से, तुम मुस्कराना प्रिये! !

बस गिरे अगर तिनका मेरी आँखों का निकाल जाना।
डगमगाते मेरे कदमो को खुद के रास्तों पर ले आना।

उलझ रही मेरी सांसों को एक बार फिर से सुलझाना प्रिये!
दुआ मागूँगा तुम्हारे लिए रब से, तुम मुस्कराना प्रिये! !

मैं नही हूँ काविल तुम्हारी चाहत के मगर।
नादाँ हूँ हद से ज्यादा, हूँ तुम्हारा ए प्रिये मगर।

दो-चार गांठ अपने रिश्ते में तुम और बांध जाना प्रिये!
दुआ मागूँगा तुम्हारे लिए रब से, तुम मुस्कराना प्रिये! !

रचनाकार -प्रेम कुमार गौतम

Saturday, January 21, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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prem kumar gautam

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