बसंत Poem by C. P. Sharma

बसंत

न मै सूरज का पुजारी
न हूँ चन्द्रधर का,
जिस में प्रियतमा
समां जाए मै तो
बस पुजारी हूँ
उस प्रेम का।

बिन प्रियतम
क्या है बसंत?
बस पीताम्बर
परिधान।
बीना गोपीकृष्ण के
न हो जग कल्याण

इस नव बसंत ऋतु
प्रेम का हो संचार
रिध्धि सिद्धि में वृद्धि हो
बढे प्रेम व्यवहार

बसंत
Monday, February 27, 2017
Topic(s) of this poem: love,moon,sun
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C. P. Sharma

C. P. Sharma

Bissau, Rajasthan
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