न मै सूरज का पुजारी
न हूँ चन्द्रधर का,
जिस में प्रियतमा
समां जाए मै तो
बस पुजारी हूँ
उस प्रेम का।
बिन प्रियतम
क्या है बसंत?
बस पीताम्बर
परिधान।
बीना गोपीकृष्ण के
न हो जग कल्याण
इस नव बसंत ऋतु
प्रेम का हो संचार
रिध्धि सिद्धि में वृद्धि हो
बढे प्रेम व्यवहार
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