बात मन में Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बात मन में

बात मन में

संसदीय सांप
एक ही दिन में हो जाता है हमारा बाप
संपत्ति बढ़ जाती है अनापशनाप
अब लगाओ नारा आप!

सब चले है एक ही रस्ते पर
तुष्टिकरण करो और करो पार
सब बाधाए जो रास्ते में थी
अब धन की सामने नहीं थी।

आपको भी लालसा
सब का मन एक सा
देश का किसान क्या करेगा?
सब का पेट कब तक भरेगा?

अब एक नया फलसफा सामने आया है
सब ने मिलकर वफ़ा के नाम पर देश को मुर्ख बनाया है
नयारपालिका का रोल अपने आप में रोषजनक है
व्यभिचारी और दुराचारी को मिलजाता छुटादौर अचानक है।

उनको जामीन मिल जाती है आसानी से
गरीब सड़ जाता है पूरी जिंदगी सलाखों के पीछे
सालो गुजर जाते है न्याय पानेके लिए
यही तो है बात मन में रखने के लिए।

बात मन में
Wednesday, June 28, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

Waheed Musah Thank you Hero Most grateful for your motivations and encouragement Like · Reply · 1 · 15 hrs

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welcome waheed musa Like · Reply · 1 · 1 min

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welcome aman pandey Like · Reply · 1 · 1 min

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Kavi C M Atal Like Reply · 1 · 2 hrs

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Welcome anirudhh kumar anand Like · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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