चलते चलते Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

चलते चलते

चलते चलते

वक्त ने कहाँ ठहरना है?
उसने तो अपना काम करना है
जो सोचता रह गया
मानो वंचित रह गया।

जिसने भी देरी की
समझ लो हराकेरी की
अपनी मौत को दावत दी
और जिंदगी से अदावत की।

में ये करुं, में ये करलू
अपनों से जाके गले मिल लू
सभी से अपनी ख़ुशी का इजहार कर लू
पर टाइम से ना कह पाउ रुक तू!

समय कहता ' में पाबन्द अपने मालिक का '
हुकम मानना सिर्फ अलौकिक आदेश का
तुम अपने सामान को इकठे करते जाओ
ले जाओ साथ तो जरूर ले आओ।

सफर का इतना ख्याल मत करो
बस उसपर समय नष्ट मत करो
जैसे सामना करना पड़े वैसे ही सामना करते जाओ
प्रसिद्धि और समृद्धि मिलती है तो बटोरते जाओ।

ना वो कहके आएगी और ना कहके जाएगी
समय की पाबंध पलभर में अद्र्श्य हो जाएगी
आप देखते रह जाओ गे हाथ मलते मलते
इसलिए कहते है मिलाओ घडी समय के साथ चलते चलते।

चलते चलते
Sunday, July 23, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

Bijendra Singh Tyagi Bijendra Singh Tyagi Ur poem is wonderful. Like · Reply · 1 · 1 min

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welcome breJENDRA SINGH TYAGI Like · Reply · 1 · 2 mins Manage

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welcome manisha mehta Like · Reply · 1 · Just now

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welcome aman pandey Like · Reply · 1 · Just now

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Rajnish Manga 23 July 2017

समय का सुंदर सार व एक अद्भुत अभिव्यक्ति. धन्यवाद. जिसने भी देरी की समझ लो हराकेरी की अपनी मौत को दावत दी और जिंदगी से अदावत की।

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aapkaa sadar aabhaar

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ना वो कहके आएगी और ना कहके जाएगी समय की पाबंध पलभर में अद्र्श्य हो जाएगी आप देखते रह जाओ गे हाथ मलते मलते इसलिए कहते है मिलाओ घडी समय के साथ चलते चलते।

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Gaurav Verma Like · Reply · 1 · 53 mins Manage

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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