बचपन और बुढ़ापे में अजब सा एक नाता है
लुटा कर ज़िन्दगी बच्चों पे बूढ़ा मुस्कुराता है
जिगर के ख़ून से सींचा शजर फलदार होने तक
वही बच्चा ऊस बूढ़े को अकेला छोड़ जाता है
: नादिर हसनैन
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