सब कर मन भए मोरवा ए। Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

सब कर मन भए मोरवा ए।

घन घटा बारिद देखि,
सब कर मन भए मोरवा ए।
गर्जत बदरा, बिजुरिया चमकै,
नाचत एक सँग मोरनी मोरवा ए।
दादुर पपीहा एक सँग बोलत,
कोयल करत कुहू-कुहूकरवा ए।
सकल मैथिल रमणी बेगि धाई,
साजि सोलहों श्रृँगारवा ए।
झूलन हेतु बसन-भूषण धारे,
लगाये सब.रुचिर हिंडोरवा ए।
तापर सजाई नवीन पत्रदल,
सुभग सुभग पुहुप दलवा ए।
रघुबर सिया पधराई आनन निरखत,
तकत एकटक सब नयन कोरवा ए।
'नवीन''झूलन साज लखि कै,
सब सखी भईं आपुन सुधि बिसरवा ए।

Thursday, August 17, 2017
Topic(s) of this poem: love
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