दोस्ती Poem by Manisha Kholiya

दोस्ती

Rating: 3.8

हर किसी से दोस्ती ख़ास नहीं रह सकती
जाह दोनो तरफ़ से इच्छा ना हो वहाँ दोस्ती बरकरार नहीं रह सकती
जब बन जाए कोई अपना ख़ास दोस्त तो किसी और नए दोस्त की तलाश नहीं रह सकती
हर दोस्ती के स्तर बदलते रहते है पर दिल से निभायी दोस्ती कभी दरकिनार नहीं रह सकती
जो करे आपस की बातें किसी और से भी तो यकीनन वो दोस्ती कभी पाक नहीं रह सकती
सच्ची समझ और मस्ती के बिना कोई दोस्ती गहरी और मख़सूस नहीं रह सकती
हर किसी से दोस्ती ख़ास नहीं रह सकती...

दोस्ती
Sunday, August 2, 2020
Topic(s) of this poem: friendship
COMMENTS OF THE POEM
Manisha 02 August 2020

बहुत धन्यवाद वर्षा जी, शरद ji और रजनीश जी - टाइपो एरर था आख़री पंक्तियों में 🙏

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Varsha M 02 August 2020

Sach hi to bola hai dosti sabse khas hoti nahi Par wo ehsaas jo dosti de jati Baya se pare hai kalpana ke Wo dosti jo le aaye muskan Chahe jo bhi ho haal Wo dosti kyo na ho khas Jo dil ko cho jaye har haal me. Shabdo ka yeh pyara sa ehsaas kheench lejata un lamhoon pe jo dil ke bohoot kareeb hai.

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Sharad Bhatia 02 August 2020

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ...! ! जिन्दगी में मरहम से भी अच्छे होते हैं। " कुछ दोस्त" , गले लगते ही हर दर्द गायब कर देतें है....! ! ! " कुछ दोस्त" , वो दोस्त ही तो हैं, जो सुकून दे जाते हैं बाकी तो सब formality निभाते हैं, बच्चे वसीयत और रिश्तेदार हैसियत पूछ जाते हैं सिर्फ दोस्त ही तो होते हैं, जो हाल-चाल पूछ, गले लगाते हैं एक प्यारा सा एहसास मेरे प्यारे से दोस्तों के लिये Rated 10+

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Rajnish Manga 02 August 2020

मुझे यह रचना पढ़ कर ऐसा लगा जैसे दोस्ती के विषय कीमती कोटेशन पढ़ रहा होऊं. आपने बहुत अच्छा लिखा है और दोस्ती पर कुछ नये विचार सामने रखे हैं. अंतिम दो पंक्तियों में शायद कुछ शब्द जोड़ने या घटाने की ज़रूरत है. धन्यवाद, मनीषा जी.

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