लूटने में व्यस्त Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लूटने में व्यस्त

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लूटने में व्यस्त

एक मात्र राष्ट्रपिता
राष्ट्र के रचयिता
गरीबो के बेली
स्वतंत्रता की खेली होली

ना कोई हथियार
ना कोई अस्त्र धारदार
फिर भी लड़ाई असरदार
पुरे भारत के सेनानी और सरदार।

ना कोई धर्म
ना कोई वचन मर्म
सिर्फ एक ही ध्येय
रहा उद्देश्य 'श्रद्धेय '

ढोंगी आज भी चले जाते है
फूल चढाने पर मन अशुद्ध है
वचन के चोर और लघुता से पीड़ित
लालची मानसिकता ओर नाम की भी नहीं इंसानियत।

'राष्ट्रपिता' का सम्बोधन करते मन भर आता है
उनके बोल आज भी कानो में गूंजते है
सही कहा था आप ने 'कांग्रेस को समाप्त कर दो '
प्रजा को अपने अधिकार दे दो

आज पुरे के पुरे खानदान
राजनितिक अखाड़े में दिखाते शान
सब लूटने में व्यस्त है राष्ट्र का खजाना
बापू आज आपको लगता ' ये कैसा आ गया है ज़माना

COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 05 October 2017

A nice gratitude to Mahatma Gandhi by comparing the present condition of an area (not only India) that is being destryed by relifgious extremism and violence.

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Mehta Hasmukh Amathalal 04 October 2017

welcome jAIRAM TIWARI

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Mehta Hasmukh Amathalal 04 October 2017

सब लूटने में व्यस्त है राष्ट्र का खजाना बापू आज आपको लगता ' ये कैसा आ गया है ज़माना

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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