उलाहना न दो उसे हर पल
उसे भी दर्द होता है
वो भी है सवेंदनशील मन लिए
उसे भी दर्द होता है
चाहती है जी जान से वो अपने अपनों को
, करो प्रयास उसे समझने का
प्रेम के लिए न्योछावर करती,
अपने सारे सुख और आराम
जीती है वो तुम्हारे लिए फिर
ये हरपल की उलाहना उसे ही क्यों?
होगा जीना दूभर उसके बिनाफिर
ये रुसवाईयां क्यों?
क्या होती नहीं कभी गलती तुमसे?
तो छोटी सी गलती पर उसेकिया इतना दण्डित क्यों?
है सहारा तुम्हारे जीवन का वो, नहीं सहारे तुम उसके
उसकी प्रार्थना पर है टिका जीवन तुम्हारा
फिर पाल रखा तुमने यह झूठाअंहकारभ्रम क्यों?
जरा सोचो जिसने जन्म दिया वो
ही थी एक माँ गृहिणी जिसने(बिमारी में) सेवा कर तंदुरस्ती दी तुम्हे
जिसने पालपोश किया बड़ा
जिसने पग पग साथ दियाउसकी ही उलाहना हर पल क्यों?
कोशिश करो समझने की उसे दे दो थोडा प्यार भी
उसे कुछ पल ख़ुशी, उसके पास रहने दो
बिन गृहिणी के 'घर' नहीं मकान हुआ करते हैं
ये छोटी सी बात अपने जहन में रहने दो
करो सम्मान नारी का उसे सिर्फ अबला न समझो.
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