हम कागज़ नहीं दिखाएंगे Poem by Thinker Shah

हम कागज़ नहीं दिखाएंगे

देश के टुकड़े  टुकड़े  वाले नारे  हम जोर शोर से  लगाएंगे
बस और ट्रैन हम फूकेंगे पर फासिस्ट आप  ही कहलायेंगे
कितना भी आप जोर आजमा लो हम कागज़ नहीं दिखाएंगे

अपने  पीड़ित भाइयो के लिए हम आंसू एक न बहाएंगे
पर खून सने पडोसी के हाथो से हम जाकर हाथ मिलाएंगे
कितना भी आप जोर आजमा लो हम कागज़ नहीं दिखाएंगे

अपने देश की संपति ध्वस्त कर हम वॉक लिबरल बन जायेंगे
और हाथो मे पत्थर लेकर अपनी ही पुलिस को निशाना बनाएंगे
कितना भी आप जोर आजमा लो हम कागज़ नहीं दिखाएंगे

CAB का मतलब भी ना जाने पर सड़क पर कोहराम मचाएंगे
अपनी ही माँ को गाली देकर माँ  के दूध में दरार गिराएंगे
कितना भी आप जोर आजमा लो हम कागज़ नहीं दिखाएंगे 

हर सड़क हर गली हर शहर में भयावह दंगे हम करवाएंगे
किन्तु इसको उत्तर दिया तो नाज़ी हिटलर आप ही बन जाएंगे
कितना भी आप जोर आजमा लो हम कागज़ नहीं दिखाएंगे  
 
घुसपैठिये हो गए अपने और अपने हमे फूटी आँख न सुहायेंगे
टैक्स न भरा कभी कोड़ी हमने पर  राष्ट्र संपति हम जलाएंगे
कितना भी आप जोर आजमा लो हम कागज़ नहीं दिखाएंगे 

चे ग्वेरा का टीशर्ट पहनकर सीना खोल हम बहुत इतरायेंगे
 गद्दारों के साथ मिलकर नारे अपनों से ही आज़ादी के लगायेंगे
कितना भी आप जोर आजमा लो हम कागज़ नहीं दिखाएंगे
 
अपने ही घर में घर के चिराग एक दिन इससे बड़ी आग लगाएंगे
शेर के दांतो से गिनती करने वाले देश को दीमक बन कर खाएंगे
कितना भी आप जोर आजमा लो हम तो कागज़ नहीं दिखाएंगे

Wednesday, March 25, 2020
Topic(s) of this poem: indian,political,revolution
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