1.
रंगों से झोली भरे हुए देखो फिर आया है फागुन,
मल के गुलाल तन-मन पे लो यारो इतराया है फागुन।
बाजे धमार-चौताल यहाँ, गायेहोरी भी झूम-झूम,
मस्ती में नाचे बहका सा जैसे बौराया है फागुन।
रंगीन हुए अखबार आज, नेता-अभिनेता छाये हैं,
बाजारों के क्या कहने हैं, अच्छे दिन लाया है फागुन।
सालों पहले जो गाँव छोड़ आये थे गोबर औ नथ्था,
जाने राम ही उन्हें कितना शहर में भाया है फागुन।
काकी के घास-फूस वाले घर में भी होली मनती है,
पर, सच पूछो परधान के दर पर ही तो छाया है फागुन।
2.
रंगों वाली बढ़िया होरी,
रंग-बिरंगी चिड़िया होरी।
गेहूँ की फसलें पकते ही,
बन जाती है हंसिया होरी।
फागुन के दिन ये क्या आये,
गाते हैं रंगरसिया होरी।
मौका मिलते लगे खेलने,
मैरी, गुड़िया, रजिया होरी।
गले लग रहे लोग प्रेम से,
मीठी जैसे गुझिया होरी।
साभार: दैनिक जागरण, मार्च,2016
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
Pranam sir very nice real life ko darshaya gaya hai aapke es gajal mai thanks regards
आदरणीय त्रिपाठी जी, धन्यवाद...