1.
रंगों से झोली भरे हुए देखो फिर आया है फागुन,
मल के गुलाल तन-मन पे लो यारो इतराया है फागुन।
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पांच ग़ज़लें
-डॉ. वेद मित्र शुक्ल
अंग्रेजी विभाग, राजधानी काॅलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110015
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चार ग़ज़लें
- डॉ. वेद मित्र शुक्ल
अंग्रेजी विभाग, राजधानी कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110015
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ग़ज़लें
डॉ. वेद मित्र शुक्ल
राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
नई दिल्ली - 110015
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पाँच ग़ज़लें
डॉ. वेद मित्र शुक्ल
अंग्रेजी विभाग, राजधानी कॉलेज
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1.
सच यदि हर किरदार बोलता,
झूठ नहीं अखबार बोलता।
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1.
ये छाया ने क्या मात खायी है यारो,
कड़ी धूप माथे पे छायी है यारो।
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1. कविताई जो असल, ज़िंदगी जीकर जाना
भीड़ बहुत थी प्लेटफ़ॉर्म पर और उमस भी
ऐसे में यों लगा अधूरी ही रहने को
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सबसे पहले जिनकी पूजा हम करते, प्यारे गणेश,
जन-गण-मन में गणपति बप्पा हो बसते प्यारे गणेश|
सारे जग में जीवन भर हम कहाँ-कहाँ घूमें, लेकिन -
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डॉ. वेद मित्र शुक्ल की सात कविताएँ
संपर्क: अंग्रेजी विभाग, राजधानी कॉलेज, राजा गार्डन, नई दिल्ली - 110015
मोबा.9599798727
1. तुलसी
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Dr Ved Mitra Shukla (Poet, Short Story Writer & Translator) He teaches English at Rajdhani College of University of Delhi, New Delhi. He did his MPhil and PhD from J.N.U., New Delhi. He is a bilingual author in Hindi and English, and translates in both the languages. His translation work Long Poems of Narendra Mohan was published in 2019. Recently his book titled Meaning in Bhartrhari's Vakyapadiya (2021) has been published by DK Printworld. He is also an author of three Hindi books, Jari Apana Safar Raha (a book of Hindi ghazals selected and funded by Hindi Academy, Delhi in 2019) , Kahavaton ki Kavitaen (Children's Poems Collection) in 2019, and Bapu se Sikhein (children's poems on the 150th birth anniversary of Mahatma Gandhi) in 2018. He has also edited Ramadaría Misra ki Lambi Kavitaen (2019) and Sapane Bhare Din (2020) , and co-edited Complete Works of Deendayal Upadhyay (15 vols) . He may be contacted at Mob.9953458727 Weblink: https: //rajdhanicollege.ac.in/Base/faculty%2F76)
होली पर दो ग़ज़लें जागरण से
1.
रंगों से झोली भरे हुए देखो फिर आया है फागुन,
मल के गुलाल तन-मन पे लो यारो इतराया है फागुन।
बाजे धमार-चौताल यहाँ, गायेहोरी भी झूम-झूम,
मस्ती में नाचे बहका सा जैसे बौराया है फागुन।
रंगीन हुए अखबार आज, नेता-अभिनेता छाये हैं,
बाजारों के क्या कहने हैं, अच्छे दिन लाया है फागुन।
सालों पहले जो गाँव छोड़ आये थे गोबर औ नथ्था,
जाने राम ही उन्हें कितना शहर में भाया है फागुन।
काकी के घास-फूस वाले घर में भी होली मनती है,
पर, सच पूछो परधान के दर पर ही तो छाया है फागुन।
2.
रंगों वाली बढ़िया होरी,
रंग-बिरंगी चिड़िया होरी।
गेहूँ की फसलें पकते ही,
बन जाती है हंसिया होरी।
फागुन के दिन ये क्या आये,
गाते हैं रंगरसिया होरी।
मौका मिलते लगे खेलने,
मैरी, गुड़िया, रजिया होरी।
गले लग रहे लोग प्रेम से,
मीठी जैसे गुझिया होरी।
साभार: दैनिक जागरण, मार्च,2016