क्या फायदा? Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

क्या फायदा?

क्या फायदा?
Saturday, April 21,2018
2: 00 PM

क्या फायदा टूट तो सकते है
पर झुक नही सकते
नमकहरामी का गुण हम भूल नहीं सकते
अंदर ही रहकर हम हमारे पाँव फैलाते रहते।

हमें आस्तीन के सांप कह सकते है
जिसने हमें रक्षा प्रदान की, उसे काट सकते है
हमारी उपेक्षा हुई, यही गम हमें खाए जा रहा है
बस अलग होने के लिए हमें मजबूर कर रहा है

मेरी तूती अब नहीं बोलती
में नहीं कर सकता कोई सख्तो
अंदर के लोग क्यों सुनेंगे हमारी
गलती जो हे हमारी।

अब ज्यादा देर नहीं
सबको छोड़ना इतना आसान नहीं
यहाँ तो हमारा ननीहाल था
पर अब तो खस्ताहाल था।

अब खतरा है चालु रहने में
सब लोग नहीं है रखने के मुड में
मुझे जाना होगा, और छोड़ना होगा
हो सकता है फैसला भारी पडेगा ।

हमारी किम्मत कोड़ी की नहीं रही
अब तो जाएगी रहीसही
रेह कर भी!
कौन बता सकता है उनको कायदा?

क्या फायदा?
Saturday, April 21, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 22 April 2018

welcome ranjan yadav1 Manage LikeShow more reactions · Reply · 1m

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 21 April 2018

हमारी किम्मत कोड़ी की नहीं रही अब तो जाएगी रहीसही रेह कर भी! कौन बता सकता है उनको कायदा?

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success