नरेन्द्र उनका नाम था, मनुष्यों में महान थे।
रामकृष्ण गुरु जिनके, परमहंस महान थे।।
मन में था विवेक उनके, नियंत्रण में इन्द्रिय थे।
काम क्रोध से परे वह, विवेकानन्द जितेन्द्रिय थे।।
पाठ पढाकर ब्रह्मचर्य का, महत्व अंदरूनी शक्ति का समझाया था।
ब्रह्मचर्य का परिणाम ही था, जो उन्होंने एकाग्रता का उत्तम उदाहरण दिखलाया था।।
विश्व कल्याण का लक्ष्य लेकर, तालियाँ शिकागो सभा में बजवायी थी।
सब धर्मों का मूलाधार है, यही बताने गीता सब ग्रन्थों के नीचे रखवायी थी।।
बचपन से ही दिखलाया, दया का उत्तम उदाहरण था।
टूटी देवी की प्रतिमा उनसे, बच्ची के प्राण बचाना उसका कारण था।।
करके ज्ञान का प्रसार जिन्होंने, की संस्कृति की रक्षा थी।
आत्मविश्वास का मार्ग दिखाकर, दी बलोपासना की शिक्षा थी।।
साधकों के साधक वह, युवाओं के युवक थे।
गर्व हो मानवता को उनपर, ऐसे वह साधक थे।।
एक संसारी ने जब शिकागो में, ब्रह्मचर्य को झूठलाया था।
तब उसके भारी वाहन को उठाकर उन्होंने, बल ब्रह्मचर्य का बतलाया था।।
बचपन में ही माता से, मिली संस्कृति की शिक्षा थी।
जीवन का एक ही उद्देश्य, करनी सनातन धर्म की रक्षा थी।।
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