समझदारी की वो सौतन Poem by Anita Sharma

समझदारी की वो सौतन

Rating: 5.0

नाराज़होतेहैं वो
हमारी नादान हरकतों से
कुछ दिन की ज़िन्दगी है!
काश जी लेते साथ में
नादान से हमारे इश्क़ को
हाँ नासमझ हैं हम

समझ होती तो सौदागर जो होते

मासूम आँखों में शरारत
अनकही सी बातें
अधूरा एहसास गहरी सी दोस्ती

दोस्ती से थोड़े कम या....! !
उँगलियों की छुअन
झूठ का रूठना
मनाने का इंतज़ार
मीठी जलन
गुलाब की खुशबू
गीतों की मखमली फुहार
बचपन की यादें
दिल का धड़कना, उनकी याद का सजदा
पागलपन, जूनून, ना बंधन ना मजबूरी
समझदारी की वो सौतन......!
मगर रहने भी देते हैं कुछ बातें अनकही
कुछ जवाब हमारी नादानी और आपकी समझदारी में अटके से

समझदारी की वो सौतन
Sunday, July 15, 2018
Topic(s) of this poem: lost,love,saddened
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
झूठ का रूठना
मनाने का इंतज़ार
मीठी जलन
गुलाब की खुशबू
गीतों की मखमली फुहार
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 15 July 2018

Mischief in innocent eyes is understood. Waiting for persistent brings sweet irritation. Lyrics of velvet turns out of childhood. Heart beat understands pleasure of love. Sometimes sadness acquires place and sometimes joy. An amazing love poem is brilliantly penned. ...10

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